"बेटी बाचाओ बेटी पढाओ", "लाडली लक्ष्मी बाई" जैसी कई कन्या जन्म योजनाओ की काल्पनिक सफलता ने सोशल नेटवर्किंग साइटस और whatsaap जैसे संचार के माध्यमो मे अजीब से messages की सुनामी ला दी है।।
ऐसे ही उऊलजलूल messages कि श्रृंखला का अजीब सा message है "नसीब वालों को बेटियां होती है।" मेरा सावाल है कि क्या बदनसीबों के बेटे होते है ?
नहीं न बिल्कुल नही।
कन्या जन्म को प्रोत्साहन देना आवश्यक है क्योंकि भारतीय समाज कन्या भूण हत्या जैसे पाप से कंलकित है पर अजीब से messages का कोई अर्थ नही है।सोशल मीडिया में चली मुहीम ने तो परिवार में पुरुष की भूमिका को नकारा ही दिया है |
कुछ लोग facebook पे शेयर करते है "कि मुझे गर्व है कि मेरा पुत्र/पुत्री हुई" बडा अजीब है भाई बच्चे पैदा करना कब से बडी बात हो गई। एक उच्च कोटि के व्यक्ति और संस्कार वाली संतान के माता पिता होना अवश्य गर्व की बात है।
मैने अपने blog मे भी यही बात की थी।
हम पुत्र ओर पुत्री कि तुलना करते ही क्यों है एक स्वस्थ संतान होना और भविष्य मे उसका एक अच्छा इंसान होना ये माता पिता को नसीब वाला बनाता है। लडका या लडकी को बरबारी का दर्जा देते हुए सिर्फ संतान को सम्मान दे। संतान को एक बेहतरीन इंसान और एक बेहतरीन परवरिश देना क्योंकि औलाद आटे की लोई नही होते .जिसे हम जैसा चाहे शेप दें दें ....बल्कि उनके अंदर की कमियों और गुणों को धीरे धीरे बाहर निकाल कर सँवारना बहुत मुश्किल काम है
क्या आप अपने बेटे , पिता , भाई या पति के परिवार के प्रति समर्पण ,स्नेह , संघर्ष और त्याग से इनकार कर पाएंगे ? ?? आदर्श स्थिति के लिए संजीदा ख्यालों वाले रिश्तें होना संवेदनशील परिवार की नीव बनाता है |
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Thanks