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Showing posts from May, 2017

जल

जल बचाने की जिम्मेदारी वास्तव में हमें ही लेनी होगी। यह जिम्मेदारी सामुदायिक जिम्मेदारी है।  ग्लास में आधा पानी पीने के बाद आधा फेकते समय जरुर सोचना चाहिए की इस आधे ग्लास पानी के लिए आपके ही देश के एक हिस्से में लोग जान दे और जान ले रहे है | " लोग एक मटकी पानी के लिए 10 किलोमीटर की दूरी तय कर घन्टो की लाइन लगा रहे है । स्थिति की भयानकता को समझिये और सम्हलिये | "The Hindu" के दिए गए आकड़ो से स्पष्ट है के 2015 में सिर्फ महाराष्ट्र में 3228 किसानो ने आत्महत्या कर ली | 2014 से 2017 के अप्रैल तक आत्महत्या किये किसानों का सरकारी आकंड़ा 30, 000 पार कर चुका है । 2001 से यदि अकेले महाराष्ट्र का आकलन करे तो सूखे की वजह से विदर्भ में आत्महत्या करने वाले किसानो की संख्या 20 हज़ार को पार कर जाती है । ये सूखा ,अकाल अंतिम सेफ्टी सायरन है | अगली बार दिन में दो बार शॉवर, तीन बार फ्लश और चार बार फेसवाश लेने से पहले ,कार धोने वाले ,सड़क पर पानी बहाने वाले , पाइप बगीचे में डाल भूल जाने वाले,ब्रश करते वक्त नल खुला छोड़ देने वाले इस तस्वीर को याद रखे

धन-दौलत नहीं मांगते. एक बारहवीं तक का स्कूल मांगते हैं बस.

कई सड़कछाप चेहरे  जिनकी दहशत की वजह से लडकियां स्कूल, कालेज़ के रास्ते बदल बदल के जाया करती है । वे आवारा लड़के घर का पता न कर पाए इसलिए सहेलियों ,पड़ोसियों के घर घुस जाती है । ये लड़के खुद को लड़की द्वारा अस्वीकार किये जाने के बाद उन लड़कियों के प्रेम प्रसंग की मनगढ़ंत अफवाहें फैलाते है । ऐसा कई बार आपने भी निश्चित तौर पर देखा होगा । लड़कों को कई बार आपत्ति करते देखा है "ऐसा कुछ नही है लोगो का नज़रिया बदल चुका है " लेकिन ये कड़वा सच है बलात्कार पीड़ित तो दूर की बात है किसी लड़की ने लड़के के खिलाफ छेड़खानी की पुलिस रिपोर्ट भी कि तो लड़की के चरित्र पर पहले उंगलियां उठती है ।  कुछ ऐसी ही परिस्थितियों से रूबरू होने के बाद हरियाणा की रेवाड़ी के गोठड़ा टप्पा डहीना गांव में 13 स्कूली छात्राएं सात दिन से अनशन पर बैठी हैं. वे इस बात से नाराज़ हैं कि उनके लिए दसवीं के आगे की पढ़ाई की कोई सुविधा नहीं है. इसके लिए उन्हें ढाई-तीन किलोमीटर दूर एक स्कूल में जाना पड़ता है. उनका आरोप है कि रास्ते में उनसे अक़्सर छेड़खानी की जाती है. उनकी केवल एक माँग है "धन-दौलत नहीं मांगते. एक बारहवीं तक का स्कू...

I For Joker

यूँ तो बच्चो की हर उम्र, हर बात, हर याद parent's को हमेशा आंनदित करती है। पर जन्म से लेकर 5 साल तक का समय अलग ही होता है। नन्हें नन्हे रूई जैसे हाथ,एक एक करवट लेने का हिसाब किताब, पलटा तो बच्चा कब पलटा, क्या सबसे पहले खाया। किस रिश्ते का नाम सबसे पहले लेकर किसको भाग्यशाली बनाया। पहली बार fever आना, injection लगवाना, रोज check करना कि दांत आये या नहीं आये। फिर डगमगाते कदमो से चलना,ओर तोतली भाषा मे बात करना। निसंदेह हर माँ को अपने बच्चे को पहली बार गोद मे लेना अपनी आँखों के हमेशा के लिए बंद  होने तक याद रहता है। एक अलग दुनिया होती है इस उम्र के बच्चो की और उस से भी अलग सुखद और कभी कभी अत्यंत जटिल parents की। मेरी छोटी बेटी 3 साल की है आप उस से दस बार पूछ लिजिए वो हमेशा पहली बार I FOR JOKER ही बोलेगी, ओर फिर खुद ही छोटी छोटी गोल बटन जैसी आँखों को घुमा कर जोर से हसेगी।सुबह उठने से लेकर रात मे सोने तक मम्मा मम्मा........ओर मम्मी ओर पापा मे जो सबसे ज्यादा busy है उस पे उसी वक्त सबसे ज्यादा प्यार आना।रोचक पल होते है माता पिता के जीवन के बच्चे तोतली भाषा मे अपनी ही dict...

"नसीब वालों को बेटियां होती है।.....क्या बदनसीबों के बेटे होते है ?

"बेटी बाचाओ बेटी पढाओ", "लाडली लक्ष्मी बाई"  जैसी कई कन्या जन्म योजनाओ की काल्पनिक सफलता ने सोशल नेटवर्किंग साइटस और whatsaap जैसे संचार के माध्यमो मे अजीब से messages की सुनामी ला दी है।। ऐसे ही उऊलजलूल messages कि श्रृंखला का अजीब सा message है "नसीब वालों को बेटियां होती है।" मेरा सावाल है कि क्या बदनसीबों के बेटे होते है ? नहीं न बिल्कुल नही।  कन्या जन्म को प्रोत्साहन देना आवश्यक है क्योंकि भारतीय समाज कन्या भूण हत्या जैसे पाप से कंलकित है पर अजीब से messages का कोई अर्थ नही है। सोशल मीडिया में चली मुहीम ने तो परिवार में पुरुष की भूमिका को नकारा ही दिया है | कुछ लोग facebook पे शेयर करते है "कि मुझे  गर्व   है कि मेरा पुत्र/पुत्री हुई" बडा अजीब है भाई बच्चे पैदा करना कब से बडी बात हो गई। एक उच्च कोटि के व्यक्ति और संस्कार वाली संतान के माता पिता होना अवश्य  गर्व   की बात है।  मैने अपने blog मे भी यही बात की थी। हम पुत्र ओर पुत्री कि तुलना करते ही क्यों है एक स्वस्थ संतान होना और भविष्य मे उसका एक अच्छा इंसान होना ये माता पिता...

सबकुछ हारकर निर्भया जीत गयी।

इस ऐतिहासिक फैसले के लिए तालियाँ। संपूर्ण भारत को लगता है कि अब कभी भविष्य में ऐसा नहीं होगा। फैंसले 'होने के बाद' क्या होना चाहिए ये बताते हैं, काश फैसले 'होना रोकने के लिए' लिए जाते। मुझे खुशी तब होती जब उस छोटे अपराधी को भी फांसी की सजा होती । मेरी नज़र में उसको फांसी की सजा सबसे पहले होनी चाहिए । वो जो नाबालिग की आड मे बच गया उसकी सजा का क्या ....जब तक वो ज़िन्दा है इंसाफ नहीं हो सकता ... जो लड़का किसी लड़की के साथ इतना घिनोना कांड कर सकता है । किसी की मौत का कारण बन सकता है वो बच्चा कहाँ से रह गया । वो जुर्म करते हुए , वो बच्चा नही था लेकिन सजा के नाम पर बच्चा हो गया । पता नही हमारे देश का क़ानून कैसा है । ये फैसला ऐसे बच्चों का हौसला बढ़ाने के ही काम आएगा । हर बच्चा कानून की इस कमजोरी का फायदा उठाएगा और अपराध करेगा और बच्चा बन कर छूट जाएगा । एक को सजा बाकियों के लिए सबक बन सकता था । लेकिन नही हमारे देश की हमेशा से कमजोर नस रही है यहां का कानून जो इतने बड़े बड़े अपराधियों को या तो छोड़ देता है या सजा देने का फैंसला सालों साल लटका रहता है जिससे अपराधियों का क़ानून के लि...

Happy Marriage Anniversary

यू तो शादी को 9 साल हो गए।किसी एक क्षण तो ऐसा लगता है की एक दूसरे को पूरी तरह से जानते है पर दूसरे ही पल अनजाने से लगने लगते है। वैसे भी एक इंसान को समझने के लिए पूरी जिदंगी कम पड जाती हैं इसलिये मान्यताओं के मुताबिक जीवनसाथी को समझने के लिए ऊपरवाले ने सात जन्म दिए है।जिस पल महाभारत का माहौल होता है उस पल ये लगता हैं कि काश ये जन्म सातवां हो।ओर जब प्रेम की बयार बहती है तब प्रार्थना होती है की ये जन्म पहला हो। 17 अपैल 2008 इस दिन हमारी शादी हुई थी।भविष्य में जब हम अपनी बेटीयो को ये बाताए कि हम दोनों ने सगाई मे एक दूसरे को अँगूठी पहनाने के बाद पहली बार देखा था, जब की हम दोनो software से है शायद उन्हें यकीन न हो। अपने परिवार मे हमे अटूट विश्वास था या अपने ऊपर overconfidence की कोई भी हो उसे अपने साँचे मे ढाल लेगें। हाहाहा अटूट विश्वास था की माता पिता (मेरे परिप्रेक्ष्य मे बडे भाई, पिता को तो मैने पहले ही खो दिया था) हमारे लिए हमसे भी ज्यादा अच्छा सोचगें। शादी के बाद अधिकाशतः महिलाओं को किसी न किसी प्रकार का male domination natrue सहना ही पडता है कितुं मै भाग्यशाली थी।आपने मुझ पर ...

My Child Is Best

"99.6% क्यो तुम्हारे 99.9% marks क्यो नही आए, भाटिया जी के बेटे को देखो 99.9% result है। किसी काम के नही हो,कोई काम सलीके से नही कर सकते।"  अनुज की मम्मी ये कहते हुए गुस्से से लाल थी। अनुज ओर भाटिया जी का बेटा एक ही school के एक ही class 7 मे थे।ओर आज उनके results आए थे।आखोँ मे आसू लिए अनुज सोच रहा था कि क्या 99.6% कम होते है ? आजकल की शिक्षा प्रणाली ने बच्चो के शरीर पर बैग का बोझ बढा दिया है और माता पिता ने मन पर result का। हर माता पिता अपने बच्चे को सबसे आगे देखना चाहते है इस भावना मे कोई बुराई भी नही है पर रेगिस्तान से तपते, कठोर शुष्क किताबों ओर सिलेबस से जूझती नन्ही जान पर अपनी महत्वकांक्षो का बोझ मत डालिए। अपना समय याद किजिए यदि किसी बच्चे के 80% से ज्यादा marks भी आ जाए तो वो अपने माता पिता के लिए कलेक्टर बन जाता था कुछ तो सिर्फ पास हो जाने से ही जग जीत जाते थे। ओर हम, हम 99%आने पर भी खुश नही है। सख्त हाथो से भी छूट जाती है कभी कभी उगलियाँ, रिश्ते जोर से नही तमीज से थामने चाहिए।  हर बच्चा अपने आप मे unique होता है। as a parent हमारी duty है की हम बच्चे ...

खुशियों की चाभी

मै अपनी बेटी को जब भी playschool छोडने या लेने जाती हूं वो aunty हमेशा school के सामने वाले घर के gate पे मुस्कुराते हुए बच्चो की हरकतों को निहारते मिलती। चाँदी जैसे बाल, दूध जैसा सफेद चेहरा। चेहरे पे पडी झुरियां उम्र के दिनो की व्यथा बयां कर रही थी।  हमेशा सोचती थी की बात करू, पर समय जो कभी हमारे पास होता ही नही है उसकी वजह से सभंव ही नही हो पा रहा था। फिर एक दिन school से ही पता चला की school उन्ही के घर पे बना है। ये जान कर उनके लिए आदर ओर बढ गया। एक दिन कुछ काम की वजह से मैं school जल्दी पहुच गयी ओर उनसे बात करने का अवसर भी मिल गया। ओर बातो का सिलसिला चालू हुआ। दो नारियों की अनंत बातें। इन्ही बातो के दौरान पता चला की उनके दो बेटे ओर एक बेटी है। बेटे software engineer है और USA मे है। बेटी doctor है और Bangalore में है।सभी के दो बच्चे है। मैने कहा आपके पास तो एक भरा पूरा परिवार है फिर आप अकेले क्यो रहते है। "भरा पूरा परिवार" ये कहकर वो खामोश हो जाती है। कहने को तो भरा पूरा है पर देखने के लिए या बात करने के लिए कोई नही। 5साल पहले पती के देहांत पे बेटे आ...