वो अपनी बेटी का कन्यादान नही कर सकती क्योंकि वो विधवा है। विधवाएं, कुछ को घर वालों ने घर से निकाल कर वृद्धाश्रम पहुंचा दिया, कुछ स्वाभिमान की मारी स्वयं पहुंच गईं तो कुछ को काशी यानी बनारस, वृंदावन में छोड़ दिया गया. वहीं, कुछ सुहृदय बच्चों ने उन्हें यह महसूस ही नहीं होने दिया कि वे त्याज्य हैं. उन्हें पहले की तरह ही गले लगाए रखा. उन के सम्मान में कोई कमी नहीं आई. उन का जीवन धन्य हो गया. और जो निराश्रित हो गईं वे नारकीय जीवन जीने को विवश हो गईं. भारतीय समाज में "वैधव्य " की पीड़ा झेलती महिलाओं को जीवन के सभी उत्सवधर्मी रंगों से दूर कर दिया जाता है । जीवनसाथी की मृत्यु की पीड़ा और मानसिक अवसाद से गुजरती इन एकाकी महिलाओं पर सामाजिक कुरीतियां की मार जले पे नमक छिड़कने का काम करती है । वृंदावन छोटी-सी तीर्थनगरी में हज़ारों की तादाद में विधवाओं का बसेरा है. यहां रहने वाली विधवाओं की संख्या कितनी है, इसका ठीक से पता लगाने की ज़रूरत शायद किसी ने नहीं समझी.हर किसी की अपनी अलग कहानी है, अपनी अलग व्यथा है, लेकिन हश्र एक जैसा यानी अपने परिवार से दूर अलग वीरान ज़िंदगी. समंदर जै...
शाम को मै पड़ोस में जाकर गीता के पास बैठ गई। उसकी सासू माँ भी तो कई दिनों से बीमार है,बिस्तर पर ही रहती है पति बहुत पहले ही गुजर गये थे,सभी बच्चों को बडा संघर्ष करके उन्होंने पाला था।….. सोचा ख़बर भी ले आऊँ और गीता के पास थोड़ी देर बैठ लूंगी। मेरे बैठे-बैठे पड़ोस में रहने वाली उसकी तीनों देवरानियाँ भी आ गईं। गीता से पूछा ‘अम्मा जी, कैसी हैं?’और चाय-पानी पीने लगी। फिर एक-एक करके बहुओ का शिकायत पुराण शुरू हुआ। एक देवरानी कहती है जब मै शादी होकर आई तो सब लोग काम की वजह से यहाँ वहाँ थे, सासु माँ मेरे साथ ही थी सुबह 6 बजे से उठ कर चाय बनाने के चक्कर में आवाज चालू हो जाती थी। अरे नयी बहु आई है तो थोडा उसको सोने दे, नही सबेरे से हल्ला करने लगती थी। तो दूसरी ने अपनी समस्या बताई अरे 5 -6 साल पहले तो मेरे पास थी न तब कह रही थी कि अपने पोतो पोतियों के नाम से एफडी करनी है मैने सोचा कुछ तो कर देगी माताराम, पर अब तक तो कुछ भी नही हुआ। तीसरी भी पीछे क्यों रहती 'अरे माता जी के बहुत नखरे है सब्जी से आलू अलग कर के खाती है,पूरी रोटी खाने मे तो न जाने क्यों जान जलती ह...