शाम को मै पड़ोस में जाकर गीता के पास बैठ गई।
उसकी सासू माँ भी तो कई दिनों से बीमार है,बिस्तर पर ही रहती है पति बहुत पहले ही गुजर गये थे,सभी बच्चों को बडा संघर्ष करके उन्होंने पाला था।….. सोचा ख़बर भी ले आऊँ और गीता के पास थोड़ी देर बैठ लूंगी।
मेरे बैठे-बैठे पड़ोस में रहने वाली उसकी तीनों देवरानियाँ भी आ गईं। गीता से पूछा ‘अम्मा जी, कैसी हैं?’और चाय-पानी पीने लगी।
फिर एक-एक करके बहुओ का शिकायत पुराण शुरू हुआ।
एक देवरानी कहती है जब मै शादी होकर आई तो सब लोग काम की वजह से यहाँ वहाँ थे, सासु माँ मेरे साथ ही थी सुबह 6 बजे से उठ कर चाय बनाने के चक्कर में आवाज चालू हो जाती थी। अरे नयी बहु आई है तो थोडा उसको सोने दे, नही सबेरे से हल्ला करने लगती थी।
तो दूसरी ने अपनी समस्या बताई अरे 5 -6 साल पहले तो मेरे पास थी न तब कह रही थी कि अपने पोतो पोतियों के नाम से एफडी करनी है मैने सोचा कुछ तो कर देगी माताराम, पर अब तक तो कुछ भी नही हुआ।
तीसरी भी पीछे क्यों रहती 'अरे माता जी के बहुत नखरे है सब्जी से आलू अलग कर के खाती है,पूरी रोटी खाने मे तो न जाने क्यों जान जलती है बस ऊपर की परत खाती है'
शिकायतें सिर्फ़ शिकायतें
आधे घंटे तक शिकायते करने के बाद सब ये कहकर चली गईं……. कि उनको शाम का खाना बनाना है….बच्चे इन्तज़ार कर रहे हैं।
उनके जाने के बाद मैं गीता से पूछ बैठी, "गीता अम्माजी, आज एक साल से बीमार हैं और तेरे ही पास हैं।लगभग बिस्तर पर है तेरे मन में नहीं आता कि कोई और भी रखे या इनका काम करे, माँ तो सबकी है।’’
उत्तर सुनना चाहेंगे आप?
वह बोली, ‘‘मनीषा, मेरी सास सात बच्चों की माँ है। अपने बच्चो को पालने में उनको अच्छी जिंदगी देने में कभी भी अपने सुख की परवाह नही की,ससुर जी को तो उनकी सातवीं संतान ने ही नही देखा, उन्होंने अकेले उनकी दुकान सम्हाली।परिवार एक विधवा को समाज किस नजर से देखता है ये हम जानते है वो सब कुछ सहते हुए सभी बच्चों की अच्छी तरह से परवरिश की।सबको इतना कबिल बनाया की आज सभी अपने जीवन में व्यवस्थित है……क्या करे कि माँ को नीदं नही आती सुबह 6 बजे अपने हाथ से अपने लिए चाय बना लिया करती थी कभी,उम्र होने के साथ गैस बनने लगी थी तो कैसै खाये आलू, दाँत भी नही रहे तो रोटी का ऊपरी हिस्सा ही खा पायेगी न।सबके नाम से संपत्ति उन्होंने पहले ही बाँट दी है।"
ये जो आप देख रही हैं न मेरा घर, पति, बेटा,बेटी , शानो-शौकत सब मेरी सासुजी की ही देन है। …… अपनी-अपनी समझ है मनीषा । मैं तो सोचती हूँ इन्हें क्या-क्या खिला-पिला दूँ, कितना सुख दूँ, मेरे दोनों बेटे बेटी अपनी दादी मां के पास सुबह-शाम बैठते हैं….. उन्हे देखकर वो मुस्कराती हैं, अपने कमजोर हाथो से वो उन दोनों का माथा चेहरा ओर शरीर सहलाकर उन्हे जी भरकर दुआएँ देती हैँ। जब मैं सासु माँ को नहलाती, खिलाती-पिलाती हूँ, ओर इनकी सेवा करती हूँ तो जो संतुष्टि के भाव मेरे पति के चेहरे पर आते है उसे देखकर मैं धन्य हो जाती हूँ၊ मन में ऐसा अहसास होता है जैसे दुनिया का सबसे बड़ा सुख मिल गया हो
मेरी सासु माँ तो मेरा तीसरा बच्चा बन चुकी हैं
और ये कहकर वो सुबक सुबक कर रो पड़ी। मैं इस ज़माने में उसकी यह समझदारी देखकर हैरान थी, मैने उसे अपनी छाती से लगाया और मन ही मन उसे नमन किया और उसकी सराहना की।
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