सहमी सी ,सकुचाई सी ,लाल जोड़े में लिपटी मैं
माथे पर बिन्दी ,मांग में भरे सिन्दूर ,अपने नए रूप को निहारती मैं..
नयी उमीदों और आशाओं के लिए बाहें खोलती मैं
बचपन की यादों को डिब्बे में बंद कर पीछे छोडती मैं
माँ का आंगन छोड़ , नए सफ़र के लिए तैयार खड़ी मैं
बस विदा होने ही वाली थी ……………..
तभी आँखों में आंसू ,मन मेंआशीर्वाद लिए माँ ने मेरे हाथ में कुछ थमाया
.....कहा … इसमें मेरा सारा प्यार है समाया है ....
मेरे पास जो कुछ था मैंने इस थाल में है सजाया
सादी सी दिखती थाली में माँ ने करीने से था बहुत कुछ था लगाया..
.........थाली में लिखा था मेरा नाम ........
😢
नाम ही नहीं ,रिश्ता भी देख रही थी जुड़ता
थाली में रखा था प्यार,
ऐसा हो इसका भण्डार , ,कभी कम न हो, सदा रहे बढ़ता
थाली में रखा था आदर ,
रिश्ते के लिए नहीं, अनुभवों के लिए रहे सर झुकता
थाली में रखी थी सुन्दरता ,
तन का नहीं,मन का रूप रहना चाहिए निखरता
थाली में रखी थी पूजा ,
ईश्वर और कर्म दोनों की ,इसके बिना इंसान कुछ नहीं है बनता
थाली में रखी थी स्वछता ,
साफ़ घर में ही नहीं ,साफ़ मन में भी भगवान् है बसता
थाली में रखा था स्वाद ,
अन्नपूर्णा बन कर, रसोई घर रहे महकता
थाली में रखा था सत्कार ,
आनेवाला कोई भी हो ,निकले तेरे घर से
प्रसन्नचित ,हँसता -हँसता
थाली में रखा था ज्ञान ,
छुपाना नहीं,बाँट देना,इससे नहीं कोई दान है सस्ता
थाली में रखा था विश्वास ,
हो जाये तो बना रहता,खो जाये तो मुश्किल से मिलता
थाली में रखी थी मितव्ययता ,
संभल -संभल कर खर्च करना,तभी रहेगा भविष्य के लिए बचता
थाली में रखी थी सूझ बुझ ,
विवेक थामे रखना,हालात की बयार बहे चाहे उलटी दिशा में कितना
थाली में रखी थी सच्चाई ,
रहे मन और वचन दोनों में,झूठ का भेद एक न एक दिन है खुलता
थाली में रखी थी संतुष्टि ,
दूसरे पर न रहे दृष्टि ,दूसरे का बड़ा लड्डू किसी हाल में नहीं पचता
थाली में रखा था सुकून ,
शांत रह,समय से पहले ,किस्मत से ज्यादा कभी किसी को नहीं मिलता
थाली में रखी थी ममता ,
नारी को पूर्ण करती,भरे परिवार से सजा रहे तेरा गुलदस्ता
थाली में रखी थी दूर दृष्टी ,
दूर से आफत को, पास के दुश्मन को .परे रखना ,चाहे प्रयत्न जितना रहे करता
थाली में रखी थी आज़ादी ,
हर तरह की अपने लिए पूरी रखना,बंधा पंछी ,बंधा विचार जीता कहाँ? मर जाता
थाली में रखा था स्वाभिमान ,
गाढ़े रखना अपनी पहचान,जूझना और डटे रहना ,कभी न करना समझौता
थाली में रखी थी अनोखी सोच
संस्कारों में लिपटी रहना,परिवर्तन का स्वागत करना ,ये माँ ने सोचा ,और भला ये कौन सोचता ?
इतनी भरी थाली में सब से ऊपर सजी थी मेरी माँ की मुझसे आशाएं
खुश रहूँ ,आबाद रहूँ ,आज तक देती है दुआएं
इतने सालों में मायके की थाली मेरे बहुत काम आई है
बिलकुल वैसी की वैसी है ,इसमें एक खरोंच तक नहीं आई है
जीवन के हर मोड़ पर मैंने इसमें रखी चीजें आजमाई है
मायके की थाली अब मेरे चरित्र में समाई है
अपनी बेटी को भी यही दूँगी, आखिर वो मेरी परछाई है
बचपन से आज तक मैंने यही दौलत तो कमाई है
अरे हाँ
,थाली के साथ माँ ने एक पुड़िया भी थमाई थी
जिज्ञाषा वश मैंने उसे खोलकर देखा था
उसमे अहंकार ,आलस ,इर्ष्या ,धोका,झूठ ,अनादर,क्रोध,कम
,शक ,नफरत जैसा कुछ लिखा था
विदा करते वक़्त कान में मेरे वह फुसफुसाई थी ……..
ससुराल में पहला कदम रखने से पहले ,इस पुड़िया को तुम दोनों के ऊपर से न्योछावर कर देना
और इस पुड़िया को वहीँ किसी पहाड़ से नीचे फेंक देना
माथे पर बिन्दी ,मांग में भरे सिन्दूर ,अपने नए रूप को निहारती मैं..
नयी उमीदों और आशाओं के लिए बाहें खोलती मैं
बचपन की यादों को डिब्बे में बंद कर पीछे छोडती मैं
माँ का आंगन छोड़ , नए सफ़र के लिए तैयार खड़ी मैं
बस विदा होने ही वाली थी ……………..
तभी आँखों में आंसू ,मन मेंआशीर्वाद लिए माँ ने मेरे हाथ में कुछ थमाया
.....कहा … इसमें मेरा सारा प्यार है समाया है ....
मेरे पास जो कुछ था मैंने इस थाल में है सजाया
सादी सी दिखती थाली में माँ ने करीने से था बहुत कुछ था लगाया..
.........थाली में लिखा था मेरा नाम ........
नाम ही नहीं ,रिश्ता भी देख रही थी जुड़ता
थाली में रखा था प्यार,
ऐसा हो इसका भण्डार , ,कभी कम न हो, सदा रहे बढ़ता
थाली में रखा था आदर ,
रिश्ते के लिए नहीं, अनुभवों के लिए रहे सर झुकता
थाली में रखी थी सुन्दरता ,
तन का नहीं,मन का रूप रहना चाहिए निखरता
थाली में रखी थी पूजा ,
ईश्वर और कर्म दोनों की ,इसके बिना इंसान कुछ नहीं है बनता
थाली में रखी थी स्वछता ,
साफ़ घर में ही नहीं ,साफ़ मन में भी भगवान् है बसता
थाली में रखा था स्वाद ,
अन्नपूर्णा बन कर, रसोई घर रहे महकता
थाली में रखा था सत्कार ,
आनेवाला कोई भी हो ,निकले तेरे घर से
प्रसन्नचित ,हँसता -हँसता
थाली में रखा था ज्ञान ,
छुपाना नहीं,बाँट देना,इससे नहीं कोई दान है सस्ता
थाली में रखा था विश्वास ,
हो जाये तो बना रहता,खो जाये तो मुश्किल से मिलता
थाली में रखी थी मितव्ययता ,
संभल -संभल कर खर्च करना,तभी रहेगा भविष्य के लिए बचता
थाली में रखी थी सूझ बुझ ,
विवेक थामे रखना,हालात की बयार बहे चाहे उलटी दिशा में कितना
थाली में रखी थी सच्चाई ,
रहे मन और वचन दोनों में,झूठ का भेद एक न एक दिन है खुलता
थाली में रखी थी संतुष्टि ,
दूसरे पर न रहे दृष्टि ,दूसरे का बड़ा लड्डू किसी हाल में नहीं पचता
थाली में रखा था सुकून ,
शांत रह,समय से पहले ,किस्मत से ज्यादा कभी किसी को नहीं मिलता
थाली में रखी थी ममता ,
नारी को पूर्ण करती,भरे परिवार से सजा रहे तेरा गुलदस्ता
थाली में रखी थी दूर दृष्टी ,
दूर से आफत को, पास के दुश्मन को .परे रखना ,चाहे प्रयत्न जितना रहे करता
थाली में रखी थी आज़ादी ,
हर तरह की अपने लिए पूरी रखना,बंधा पंछी ,बंधा विचार जीता कहाँ? मर जाता
थाली में रखा था स्वाभिमान ,
गाढ़े रखना अपनी पहचान,जूझना और डटे रहना ,कभी न करना समझौता
थाली में रखी थी अनोखी सोच
संस्कारों में लिपटी रहना,परिवर्तन का स्वागत करना ,ये माँ ने सोचा ,और भला ये कौन सोचता ?
इतनी भरी थाली में सब से ऊपर सजी थी मेरी माँ की मुझसे आशाएं
खुश रहूँ ,आबाद रहूँ ,आज तक देती है दुआएं
इतने सालों में मायके की थाली मेरे बहुत काम आई है
बिलकुल वैसी की वैसी है ,इसमें एक खरोंच तक नहीं आई है
जीवन के हर मोड़ पर मैंने इसमें रखी चीजें आजमाई है
मायके की थाली अब मेरे चरित्र में समाई है
अपनी बेटी को भी यही दूँगी, आखिर वो मेरी परछाई है
बचपन से आज तक मैंने यही दौलत तो कमाई है
अरे हाँ
,थाली के साथ माँ ने एक पुड़िया भी थमाई थी
जिज्ञाषा वश मैंने उसे खोलकर देखा था
उसमे अहंकार ,आलस ,इर्ष्या ,धोका,झूठ ,अनादर,क्रोध,कम
,शक ,नफरत जैसा कुछ लिखा था
विदा करते वक़्त कान में मेरे वह फुसफुसाई थी ……..
ससुराल में पहला कदम रखने से पहले ,इस पुड़िया को तुम दोनों के ऊपर से न्योछावर कर देना
और इस पुड़िया को वहीँ किसी पहाड़ से नीचे फेंक देना
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