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Showing posts from July, 2017

"वैधव्य "

वो अपनी बेटी का कन्यादान नही कर सकती क्योंकि वो विधवा है। विधवाएं, कुछ को घर वालों ने घर से निकाल कर वृद्धाश्रम पहुंचा दिया, कुछ स्वाभिमान की मारी स्वयं पहुंच गईं तो कुछ को काशी यानी बनारस, वृंदावन में छोड़ दिया गया. वहीं, कुछ सुहृदय बच्चों ने उन्हें यह महसूस ही नहीं होने दिया कि वे त्याज्य हैं. उन्हें पहले की तरह ही गले लगाए रखा. उन के सम्मान में कोई कमी नहीं आई. उन का जीवन धन्य हो गया. और जो निराश्रित हो गईं वे नारकीय जीवन जीने को विवश हो गईं. भारतीय समाज में "वैधव्य " की पीड़ा झेलती महिलाओं को जीवन के सभी उत्सवधर्मी रंगों से दूर कर दिया जाता है । जीवनसाथी की मृत्यु की पीड़ा और मानसिक अवसाद से गुजरती इन एकाकी महिलाओं पर सामाजिक कुरीतियां की मार जले पे नमक छिड़कने का काम करती है । वृंदावन छोटी-सी तीर्थनगरी में हज़ारों की तादाद में विधवाओं का बसेरा है. यहां रहने वाली विधवाओं की संख्या कितनी है, इसका ठीक से पता लगाने की ज़रूरत शायद किसी ने नहीं समझी.हर किसी की अपनी अलग कहानी है, अपनी अलग व्यथा है, लेकिन हश्र एक जैसा यानी अपने परिवार से दूर अलग वीरान ज़िंदगी. समंदर जै...

कुछ बहुए माँ भी होती है।

शाम को  मै पड़ोस में जाकर गीता के पास बैठ गई। उसकी सासू माँ भी तो कई दिनों से बीमार है,बिस्तर पर ही रहती है पति बहुत पहले ही गुजर गये थे,सभी बच्चों को बडा संघर्ष करके उन्होंने पाला था।….. सोचा ख़बर भी ले आऊँ और गीता  के पास  थोड़ी देर बैठ लूंगी। मेरे बैठे-बैठे पड़ोस में रहने वाली उसकी तीनों देवरानियाँ भी आ गईं। गीता से पूछा ‘अम्मा जी, कैसी हैं?’और चाय-पानी पीने लगी। फिर एक-एक करके बहुओ का शिकायत पुराण शुरू हुआ। एक देवरानी कहती है जब मै शादी होकर आई तो सब लोग काम की वजह से यहाँ वहाँ थे, सासु माँ मेरे साथ ही थी सुबह 6 बजे से उठ कर चाय बनाने के चक्कर में आवाज चालू हो जाती थी। अरे नयी बहु आई है तो थोडा उसको सोने दे, नही सबेरे से हल्ला करने लगती थी। तो दूसरी ने अपनी समस्या बताई अरे 5 -6 साल पहले तो मेरे पास थी न तब कह रही थी कि अपने पोतो पोतियों के नाम से एफडी करनी है मैने सोचा कुछ तो कर देगी माताराम, पर अब तक तो कुछ भी नही हुआ। तीसरी भी पीछे क्यों रहती 'अरे माता जी के बहुत नखरे है सब्जी  से आलू अलग कर के खाती है,पूरी रोटी खाने मे तो न जाने क्यों जान जलती ह...

मायके की थाली

सहमी सी ,सकुचाई सी ,लाल जोड़े में लिपटी मैं माथे पर बिन्दी ,मांग में भरे सिन्दूर ,अपने नए रूप को निहारती मैं.. नयी उमीदों और आशाओं के लिए बाहें खोलती मैं बचपन की यादों को डिब्बे में बंद कर पीछे छोडती मैं माँ का आंगन छोड़ , नए सफ़र के लिए तैयार खड़ी मैं बस विदा होने ही वाली थी …………….. तभी आँखों में आंसू ,मन मेंआशीर्वाद लिए माँ ने मेरे हाथ में कुछ थमाया .....कहा … इसमें मेरा सारा प्यार है समाया है .... मेरे पास जो कुछ था मैंने इस थाल में है सजाया सादी सी दिखती थाली में माँ ने करीने से था बहुत कुछ था लगाया.. .........थाली में लिखा था मेरा नाम ........ 😢 नाम ही नहीं ,रिश्ता भी देख रही थी जुड़ता थाली में रखा था प्यार, ऐसा हो इसका भण्डार , ,कभी कम न हो, सदा रहे बढ़ता थाली में रखा था आदर , रिश्ते के लिए नहीं, अनुभवों के लिए रहे सर झुकता थाली में रखी थी सुन्दरता , तन का नहीं,मन का रूप रहना चाहिए निखरता थाली में रखी थी पूजा , ईश्वर और कर्म दोनों की ,इसके बिना इंसान कुछ नहीं है बनता थाली में रखी थी स्वछता , साफ़ घर में ही नहीं ,साफ़ मन में भी भगवान् है बसता थाली में रखा था स्वाद , अन्नपूर्णा ब...

मातृत्व: मैटरनिटी फोटोशूट

आज सशक्त महिलाओं का अपनी गर्भावस्था पर गर्व करने का अपना अलग तरीका है. वो खुश हैं, वो प्रेगनेंसी इन्जॉय कर रही हैं, और फोटोशूट के माध्यम से अपनी खुशी का इजहार भी दुनिया के सामने कर रही हैं. अभी तस्वीर आई है अमेरिका से टेनिस सुपर स्टार सेरेना विलियम्स की. इस साल जनवरी में ऑस्ट्रेलियन ओपन जीतकर रिकॉर्ड 23वें ग्रैंड स्लैम पर कब्जा करने वाली सेरेना दो महीने से गर्भवती थीं। जब उन्होनें यह टाइटल जीता तब ये बात पता चली की वो प्रेग्नेंट थीं। जो अब 8 महीने की गर्भवती हैं और उन्होंने भी अपनी खुशी वैनिटी फेयर मैगज़ीन के लिए मैटरनिटी फोटोशूट करके जाहिर की है| कोई ऐसा वैसा फोटोशूट नहीं 'न्यूड फोटोशूट'. शायद सशक्त होने का ये एक और मापदंड होता जा रहा है. ठीक वैसे ही जैसे कुछ महिलाओं का मानना है कि वो जितने कम कपड़े पहनेंगी उतने ही ज्यादा इंडिपेंडेंट या सशक्त नजर आएंगी. हो सकता है मेरी इस बात से बहुत सी महिलाएं सहमत न हों, लेकिन वास्तव में कपड़े आजकल सशक्त होने का बेहद आसान और सिंपल सा जरिया बन गए हैं.   माँ देशी हो या विदेशी सभी को गर्भावस्था में एक जैसे ही अनुभव होते हैं. बच्चे को ले...