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शहीद की विधवा ........
मोबाइल पे तुम्हारा नंबर ना अब बजेगा कभी 
तुम्हारी लम्बी ढेर बातो की बस एक शुरुवात 
“ अब के बार जो आऊंगा तो ...............
कौन जान सकता है वो विरह की लम्बी राते 
जेहन में सिर्फ सिर्फ मेरे प्रिय तुम्हारी बाते
कुछ वो कशिश जो हमारे लफ्जों में ढली थी
कुछ फ़ोन पे 'अनकही" लम्बी खामोशी ने कही थी.........
रात ढले वो दोनों की मोबाइल पे लम्बी जिरह
फिर शिकवो का धीमे से मनुहार में ढल जाना
और फिर प्यार के पलो का वो आना जाना
मेरे अधर पे जो ला दे मुस्कान मंद मंद सी
तुम जानते थे बातो से मुझे गुलाबी करते जाना
कितना मैं तरसी हूँ उन बांहों के आलिंगन को
जीवन कितना बिता “रीता” प्यार भरे समर्पण को
करवा चौथ ,सालगिरह तुम संग फ़ोन में मनाती
सखियों को पिया संग देख मन मसोस रह जाती
लगा कई बार ऐसा भी,,, खड़े मिलोगे आंगन में
तुम्हारी छोटी छोटी बाते ,पल पल आती जेहन में
मुझे समेटने प्राण प्रिय वापस आओ जीवन में...
तुम कही नही एक वर्दी कमरे में लटक रही है
तस्वीर पे माला ,,सारी खावाहिशे यहाँ अटक रही है
तुम्हारे सामानों की पेटी आज घर लौटी है
दोस्तों के हाथ मेरे नाम की आखरी चिट्ठी है ...
सब चेहरे तो दिखते है चारो दिशा हँसते _गाते
लिखा है तुमने हँसते रहना.. फिर मुझको क्यू रुलाते
तेरी वर्दी की छाती आंसूओ से पूरी रात भिगोती हूँ
सन्नाटे चिल्लाते है पल भर को ना सोती हूँ
तुझ बिन जीवन ,,,इस से मरना कही आसान है
क्या करू मैं तुम्हारी दी इस आसमानी साड़ी का ...
जिसमे कहते थे समन्दर की सीप का कोई मोती हूँ
इस दुनिया की भीड़ से मेरा नही कोई नाता है
देश का क़र्ज़ निभाना था सों निभाया तुमने
पत्नी के इंतज़ार को यू अधूरा छोड़ क्या कोई जाता है

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