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Showing posts from 2016
एक पेट भर हरी जमीं होगी, एक साँस भर खुला आसमाँ होगा। मेरे लिए भी खुदा ने आखिर, बनाया कोई तो आशियाँ होगा॥ एक मुट्ठीभर थमा वक्त होगा, एक लौ भर फिक्र का धुआँ होगा। सुकून भरे पल होंगे, कुछ यादें होंगी, मन दुबारा फिर जवाँ होगा ॥ एक गोद भर बिस्तर हो माँ जैसा और एक थपकी भर नींद मेरे उड़ते-तैरते ख्वाबों के लिए, कोई तो दोरंगा नीला मकाँ होगा॥ जहाँ आदमी आदमी को समझें, जहाँ हकीकत सुनने में अच्छी लगे जहाँ मुखोटे नहीं चेहरे दिखें, जहाँ सियासत का ना कोई निशाँ होगा ॥ खुदा ने अस्सी बरस देके भेजा, यहाँ लम्हों तक की फुर्सत नहीं है। मेहनत वहाँ भी होगी सही है मगर काम सिर्फ एक मेहमाँ होगा ॥ कुछ गहरी लंबी साँसें होगी, कुछ वक्त होगा कुछ जिंदगी भी कुछ हिम्मत होगी कुछ सोच होगी कुछ हौसलों का तूफाँ होगा ॥ ना दौलत होगी, ना लालच, ना वासना, ना डर, ना फिक्र होगी मेरा श्याम होगा एक बंसी होगी और सुरों का हँसी कारवाँ होगा ॥ जिसे कहते हैं सब खुदा अब खुदा ही जाने वो कहाँ होगा। एक पाक दिल होगा, एक पीर होगी, मेरा राम बस वहाँ होगा। एक पेट भर हरी जमीं होगी, एक साँस भर खुला आसमाँ होगा। मेरे लिए भी खुदा ने आख...
ज़िन्दगी में कुछ भी कभी हरपल नहीं रहता जो आज साथ होता है तुम्हारे वो कल नहीं रहता। मैं फ़िज़ूल रोया करता था लम्हों पे दशको पे समझ आया अब की वक़्त खुद भी सदा प्रबल नहीं रहता। मरते हैं इसके भी पल जो बहते हैं इसकी धाराओ में सदा को ठहरा हुआ कोई भी इसका पल नहीं रहता। सिर्फ तू भंवर में है ये सोचना सरासर भूल है इस दौर में ये झरना किसी के लिये कल-कल नहीं बहता। इस दूध की धारा को मैंने पूजा भी दिए भी सिराये पर जब से सागर में मिला फिर वो गंगाजल नहीं रहता। कितना लालची हूँ की जिसके सजदे किये नवाज़ा भी वो जब से खारा हुआ ठोकरों के भी काबिल नहीं रहता। तुम्हे पता ही नहीं वक्त का दूसरा नाम ही जिंदगी है यूँहीं तुम कहतें हो तुम्हारे पास ये किसीपल नहीं रहता। दोस्त ! खुशियाँ होंती हैं सिर्फ रिश्तों में, सेहत में, सुकून में बटुओं में तो किसी के भी कोई पैगम्बर नहीं रहता। ज़िन्दगी केवल मौत से मौत के सफ़र का नाम है और बंजारों का कोर्इ् ठौर—ठिकाना उम्रभर नहीं रहता। तू हाथों की लकीरों पे चला तो नदी जैसा भटकता रहा तूने खुद को कभी नहीं खोजा तभी तू सफल नहीं रहता। और तू मुझे मसीहा मत समझ मैं खुद विफल...
जब अखबारों का कलमगार बाज़ार में बिक जाता है  .फरेब का जाल फैला देते है तिलस्मी लफ्जों से अपने  रियाया को लुटने का पता तक नही चल पाता है
शहीद की विधवा ........ मोबाइल पे तुम्हारा नंबर ना अब बजेगा कभी  तुम्हारी लम्बी ढेर बातो की बस एक शुरुवात  “ अब के बार जो आऊंगा तो ............... कौन जान सकता है वो विरह की लम्बी राते  जेहन में सिर्फ सिर्फ मेरे प्रिय तुम्हारी बाते कुछ वो कशिश जो हमारे लफ्जों में ढली थी कुछ फ़ोन पे 'अनकही" लम्बी खामोशी ने कही थी......... रात ढले वो दोनों की मोबाइल पे लम्बी जिरह फिर शिकवो का धीमे से मनुहार में ढल जाना और फिर प्यार के पलो का वो आना जाना मेरे अधर पे जो ला दे मुस्कान मंद मंद सी तुम जानते थे बातो से मुझे गुलाबी करते जाना कितना मैं तरसी हूँ उन बांहों के आलिंगन को जीवन कितना बिता “रीता” प्यार भरे समर्पण को करवा चौथ ,सालगिरह तुम संग फ़ोन में मनाती सखियों को पिया संग देख मन मसोस रह जाती लगा कई बार ऐसा भी,,, खड़े मिलोगे आंगन में तुम्हारी छोटी छोटी बाते ,पल पल आती जेहन में मुझे समेटने प्राण प्रिय वापस आओ जीवन में... तुम कही नही एक वर्दी कमरे में लटक रही है तस्वीर पे माला ,,सारी खावाहिशे यहाँ अटक रही है तुम्हारे सामानों की पेटी आज घर लौटी है दोस्तों के हाथ मेरे नाम की आखरी चिट्ठी है ......
न सफारी मे नजर आई न फरारी मे नजर आई जो खुशिया बच्पन के पुरानी साईकिल पर दोस्तो के साथ सवारी मे न जर आई उम्र गुज़ार दी तिनका तिनका जिन घरौंदों को सजाने में  दंगाईयो ने एक पल भी न सोचा उन्हें ढहाने में  घर का चुल्हा  जलता था जिसके आसरे धुए राख का ढेर सजा है आज उन दुकानों में फूंक कर बस्तियां अमन की चैन से वो घरो में सों गए पुश्ते बीतेंगी अब उनके दिए जख्मो को सुखाने में मंदिर मस्जिद तू जहाँ कहे चल मैं सर झुका दूँ वो सख्श लौटा दे ,लगा रहता था घर भर को हंसाने में देखते देखते हिन्दू मुस्लिम में बाँट दिया हाड मांस के लोगो को इंसानों को नाकामयाब देखा शैतानों को हराने में जिनकी अगुवाई में निकले दोनों तरफ के लोग झंडे लेकर खबर नही वो रहनुमा लगे है धंधा अपना चमकाने में मत फैलने दो नफरतो की धुंध फिजा में मुद्दते रोती है बिलख बिलख इंसानियत को मनाने में वक़्त है रोक लो शहर में दंगे की अफवाहों को ज़माने गुजर जाते है एक दुसरे के आँसुओ को सुखाने में .. उम्र गुज़ार दी तिनका तिनका जिन घरौंदों को सजाने में जलजलो ने एक पल भी न सोचा उन्हें ढहाने में .