पेड़ के ऊपर चढ़ा आदमी ऊंचा दिखाई देता है। जड़ में खड़ा आदमी नीचा दिखाई देता है। आदमी न ऊंचा होता है, न नीचा होता है, न बड़ा होता है, न छोटा होता है। आदमी सिर्फ आदमी होता है। पता नहीं, इस सीधे-सपाट सत्य को दुनिया क्यों नहीं जानती है? और अगर जानती है, तो मन से क्यों नहीं मानती इससे फर्क नहीं पड़ता कि आदमी कहां खड़ा है? पथ पर या रथ पर? तीर पर या प्राचीर पर? फर्क इससे पड़ता है कि जहां खड़ा है, या जहां उसे खड़ा होना पड़ा है, वहां उसका धरातल क्या है? हिमालय की चोटी पर पहुंच, एवरेस्ट-विजय की पताका फहरा, कोई विजेता यदि ईर्ष्या से दग्ध अपने साथी से विश्वासघात करे, तो उसका क्या अपराध इसलिए क्षम्य हो जाएगा कि वह एवरेस्ट की ऊंचाई पर हुआ था? नहीं, अपराध अपराध ही रहेगा, हिमालय की सारी धवलता उस कालिमा को नहीं ढ़क सकती। कपड़ों की दुधिया सफेदी जैसे मन की मलिनता को नहीं छिपा सकती। किसी संत कवि ने कहा है कि मनुष्य के ऊपर कोई नहीं होता, मुझे लगता है कि मनुष्य के ऊपर उसका मन होता है। छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता, टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता। इसीलिए तो भगवान कृष्ण को शस्त्रों से सज्ज, रथ पर चढ़...
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