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जितना कम सामान रहेगा उतना सफ़र आसान रहेगा

अब के सावन में ये शरारत मेरे साथ हुई
मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई
आप मत पूछिए क्या हम पे सफ़र में गुज़री
था लुटेरों का जहाँ गाँव, वहीं रात हुई




हर सुबह शाम की शरारत है
हर ख़ुशी अश्क़ की तिज़ारत है
मुझसे न पूछो अर्थ तुम यूँ जीवन का
ज़िन्दग़ी मौत की इबारत है



अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए
जिसमें इन्सान को इन्सान बनाया जाए
जिसकी ख़ुश्बू से महक जाए घर पड़ोसी का
फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए
आग बहती यहाँ गंगा में, ज़मज़म में भी
कोई बतलाए कहाँ जा के नहाया जाए
मेरा मक़सद है ये महफ़िल रहे रौशन यूँ ही
ख़ून चाहे मेरा दीपों में जलाया जाए
मेरे दु:ख-दर्द का तुम पर हो असर कुछ ऐसा
मैं रहूँ भूखा तो तुमसे भी न खाया जाए




जितना कम सामान रहेगा
उतना सफ़र आसान रहेगा
जितनी भारी गठरी होगी
उतना तू हैरान रहेगा
उससे मिलना नामुमक़िन है
जब तक ख़ुद का ध्यान रहेगा
हाथ मिलें और दिल न मिलें
ऐसे में नुक़सान रहेगा
जब तक मन्दिर और मस्जिद हैं
मुश्क़िल में इन्सान रहेगा

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