जब वो कम उम्र ही था
उसने ये जान लिया था
कि अगर जीना है
बड़ी चालाकी से जीना होगा
आँख कि आखिरी हद तक है बिसात-ऐ-हस्ती
और वो एक मामूली मोहरा है
एक एक खाना बहुत सोच के चलना होगा
बाज़ी आसान नहीं थी उसकी
दूर तक चारों तरफ़ फ़ैले थे
मोहरे
जल्लाद
निहायत सफ़्फ़ाक
सख्त
बेरहम
बहुत ही चालाक
अपने हिस्से में लिये पूरी बिसात
उसके हिस्से में फ़क़त मात लिये
वो जिधर जाता था उसे मिलता था
हर नया खाना नई घात लिये
वो मगर बचता रहा
चलता रहा
एक घर
दूसरा घर
तीसरा घर
पास आया कभी औरों के
कभी दूर हुआ
वो मगर बचता रहा
चलता रहा
गो कि मामूली सा मोहरा था मगर जीत गया
यूँ वो एक रोज़ बड़ा मोहरा बना
अब वो महफूज़ है एक खाने में
इतना महफूज़ कि दुश्मन तो अलग
दोस्त भी पास आ नहीं सकते
उसके एक हाथ में है जीत उसकी
दूसरे में तन्हाई है
-- जावेद अख्तर
उसने ये जान लिया था
कि अगर जीना है
बड़ी चालाकी से जीना होगा
आँख कि आखिरी हद तक है बिसात-ऐ-हस्ती
और वो एक मामूली मोहरा है
एक एक खाना बहुत सोच के चलना होगा
बाज़ी आसान नहीं थी उसकी
दूर तक चारों तरफ़ फ़ैले थे
मोहरे
जल्लाद
निहायत सफ़्फ़ाक
सख्त
बेरहम
बहुत ही चालाक
अपने हिस्से में लिये पूरी बिसात
उसके हिस्से में फ़क़त मात लिये
वो जिधर जाता था उसे मिलता था
हर नया खाना नई घात लिये
वो मगर बचता रहा
चलता रहा
एक घर
दूसरा घर
तीसरा घर
पास आया कभी औरों के
कभी दूर हुआ
वो मगर बचता रहा
चलता रहा
गो कि मामूली सा मोहरा था मगर जीत गया
यूँ वो एक रोज़ बड़ा मोहरा बना
अब वो महफूज़ है एक खाने में
इतना महफूज़ कि दुश्मन तो अलग
दोस्त भी पास आ नहीं सकते
उसके एक हाथ में है जीत उसकी
दूसरे में तन्हाई है
-- जावेद अख्तर
Comments
Post a Comment
Thanks