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बूंद सी ख्वाहिश

बूंद सी ख्वाहिश थी , सागर जैसी शीद्दत से चाही थी......
..........पल भर खुद के जिन्दगी की मिलकियत की गुज़ारिश थी...
...........न कोई गुनाह करना था ,न किसी का दिल दुखाना था.......
..........जिन्दगी की अहमियत समझ बेमकसद गुज़ार देना उम्र..
......... मेरे लिए उसूलो में रहने की बस इतनी सी तो कीमत थी....
…………खुला आसमा देख भी समेट ली सहम के पाखे मैंने हमेशा
......... एक बार उड़ान भर के देखू मैं भी इतनी छोटी सी हसरत थी.....
..........हर दायरा, इज्ज़त , हद ,तालीम, लिहाज मुझे मंज़ूर ख़ामोशी से..........
..........लेकिन झुका सर रहे मेरा होता है सलीका ये कैसी नसीहत थी........
......... मेरे हर कदम पे .दुनिया की नजरो से पहले खुद को देखू मैं.......
......... मेरे मौला तेरी दुनिया में हमारे लिए कैसी ये दहशत थी...
............कुछ मुनासिब से सवाल पूछ लू ,कुछ लाज़मी से जवाब दे दू.....
...........क्या ये मेरे घर के बड़ो की फजीहत थी...
.........कोई कसूर तो नही ,कोई तौहीन तो नहीं इजाजत मांगना....
......... मैं भी हु जिन्दा बड़ी मामूली सी मेरी भी चाहत थी...
...........मेरे,खवाब, वक़्त,.इरादे..कुछ भी नही मेरी हद में...
.. ...दुनिया की मुझ पर ही ये कैसी हुकुमत थी
.........कभी खुद का फैसला खुद लू बस इतनी सी गुजारिश थी....
.........बूंद सी ख्वाहिश थी सागर जैसी शिद्दत से मांगी थी............
........कुछ कमज़ोर से ख्वाब पल ही जाते है पलकों पे.....
........इतनी बेपरवाही से न करो बेरंग इतनी सी शिकायत थी..............
...... न तख्तो ताज चाहा कभी बस इतनी सी जरुरत थी....
...... छोटे से दिल को मामूली से अरमानो से मोहब्बत थी.....
…….साँसों के थमने से पहले खुली हवा में एक बार सांस लू.....
.....ऐसी आरजू गर रखु जो मैं तो क्या ये खिलाफत थी.....
.....सभी बंद तालो के बाद सूराखो से छन के आती रौशनी है.....
.....मैंने ये बात बता दी तो क्या हंगामा और आफत थी.....
......कद्र हर रिश्ते की मुझको है अब ये कैसे बताऊ....
.....लेकिन गैरत मेरी भी जिन्दा है बता दी मैंने तो ये बगावत थी....
......बूंद सी ख्वाहिश थी सागर जैसी शीद्दत से चाही थी.....

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