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Showing posts from September, 2015
.हर शख्स सलामती से लौटे अपने घरो को मौला इंतज़ार करते है आँगन, घर में रहने वालो का कोई किसी से बेवक्त बिछड़ ना जाए रहम करना रिश्ते हिफाज़त में रखना जमीं पे रहने वालो का अगर आम बोने से आम मिलते हैं, और नीम बोने से नीम, आओ लगाकर देखें फसल दुआ की न कोई भूखा रहे, और न कोई यतीम बात करने से, ही बात बनती है... बात न करने से, बाते बनती हैं... तारीफ हर कोई करे_____ ये कभी चाहा ही नहीं । कोई बुराई न करे_____ ये कोशिश जरुर की  बदलने को हम भी बदल जाते । फिर अपने आप को क्या मुंह दिखाते ।। ना किस्सों से और ना किश्तों से... ये ज़िन्दगी बनती है कुछ रिश्तों से. काश मेरा घर तेरे घर के करीब होता,बात करना न सही , देखना तो नसीब होता..

बूंद सी ख्वाहिश

बूंद सी ख्वाहिश थी , सागर जैसी शीद्दत से चाही थी...... ..........पल भर खुद के जिन्दगी की मिलकियत की गुज़ारिश थी... ...........न कोई गुनाह करना था ,न किसी का दिल दुखाना था....... ..........जिन्दगी की अहमियत समझ बेमकसद गुज़ार देना उम्र.. ......... मेरे लिए उसूलो में रहने की बस इतनी सी तो कीमत थी.... …………खुला आसमा देख भी समेट ली सहम के पाखे मैंने हमेशा ......... एक बार उड़ान भर के देखू मैं भी इतनी छोटी सी हसरत थी..... ..........हर दायरा, इज्ज़त , हद ,तालीम, लिहाज मुझे मंज़ूर ख़ामोशी से.......... ..........लेकिन झुका सर रहे मेरा होता है सलीका ये कैसी नसीहत थी........ ......... मेरे हर कदम पे .दुनिया की नजरो से पहले खुद को देखू मैं....... ......... मेरे मौला तेरी दुनिया में हमारे लिए कैसी ये दहशत थी... ............कुछ मुनासिब से सवाल पूछ लू ,कुछ लाज़मी से जवाब दे दू..... ...........क्या ये मेरे घर के बड़ो की फजीहत थी... .........कोई कसूर तो नही ,कोई तौहीन तो नहीं इजाजत मांगना.... ......... मैं भी हु जिन्दा बड़ी मामूली सी मेरी भी चाहत थी... ...........मेरे,खवाब, वक़्त,.इरादे..कुछ भी नही मेरी हद में.....

श्राध्द्ध.

 माँ की बूढी आँखों के सामने बेरुखी से गुजर जाते थे कमरे से.... .. ...पास बैठ उस उदास थके काँधे पे बाँहे प्यार से कभी डाला नही.......  .... . .सूरज को देख जल का पितरो को अर्पण कर रहे है जो आज ........ .... पानी ले ना बैठे करीब, मुँह में प्यार से डाला कभी निवाला नही......... .. मिलो का सफर कर उनके नाम आये गया में अब पिंड दान करने ........ .. घुमने गए अकेले सदा कभी साथ उनको चलने कोई पूछने वाला नही........ ... पंडितो को मनुहार जिद से जो जिमा रहे हो जमाने के आगे आज ........... .. माँ बाप की सेवा तारती जितना कोई पितृपक्ष या कोई शिवाला नही