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Showing posts from 2010
सवाल ये नहीं कि मंजिल कितनी दूर है; सवाल ये भी नहीं कि जीवन के चौराहे पर निर्णय बड़ा गंभीर है ; मंजिल नहीं आसान ये तर्क तो कायर लेते हैं; लक्ष्य है जिनकी आँखों में उन्हें धूप छाँव फर्क नहीं देते हैं ; कठिन निर्णय लेने में कदम केवल मौकापरश्तों के घबराते हैं ; जिन्हें हैं सपनों का जूनून सवार वो डूबती नावं में भी तैर जाते हैं. सवाल ये नहीं कि अंधरे कितने घने है; सवाल ये भी नहीं कि उजाले की किरण अब कितने दूर है ; रास्ता है काटो से भरा ये तर्क तो पंगु देते हैं; रौशनी है जिनका इरादा वो एक चिंगरी से भी आग लगा लेते है जिनको है सूरज बंनने की इच्छा वो अपना आकाश खुद बनाते हैं.
जो पत्थर हथोडी की चोट नहीं खाता वो न तो मंदिर में न किसी मस्जिद में जगह कभी पाता मुश्किलें तो जिंदगी कि तस्वीर का अनोखा रंग हैं बिना इस रंग को पाए अगर जीत भी गए तो भी जीत की तस्वीर में मज़ा नहीं आता. जो पानी उपर से नीचे नहीं आता वो न तो किसी की लिए अमृत होता न ज़हर बन पाता गिरना तो जिंदगी का एक कदम हैं बिना इस कदम को रखे आकाश छूने का मज़ा भी नहीं आता

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एक चने ने ठान लिया तो दिया भाड़ भी फोड़, ... कुछ करने की इच्छा है तो खुद को ज़रा झिंझोड़ /~~ ...जिनने तेरे सतमाहे सपनों की हत्या की है, उनकी कर पहचान जरा तू, उनकी बाँह मरोड़। /~~ सूरज, चाँद, सितारे-सारे तेरे भी होंगे, अपने दोनों हाथों में ले कर आकाश निचोड़।/ ~~ माना पथ कँकरीला है, मौसम भी रूठा सा है, फिर भी मंजिल पा लेगा तू, छोड़- हताशा छोड़.~~

Gopal Das Neeraj

छिप छिप अश्रु बहाने वालो मोती व्यर्थ लुटाने वालो कुछ सपनो के मर जाने से जीवन नही मरा करता है सपना क्या है, नयन सेज पर सोया हुआ आंख का पानी और टूटना है उसका ज्यों जागे कच्ची नींद जवानी गीली उमर बनाने वालो डूबे बिना नहाने वालो कुछ पानी के बह जाने से सावन नही मरा करता है माला बिखर गई तो क्या खुद ही हल हो गई समस्या आँसू ग़र नीलाम हुए तो समझो पूरी हुई तपस्या रूठे दिवस मनाने वालो फटी कमीज़ सिलाने वालो कुछ दीपों के बुझ जाने से आंगन नही मरा करता है खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर के़वल जिल्द बदलती पोथी जैसे रात उतार चांदनी पहने सुबह धूप की धोती वस्त्र बदलकर आने वालो चाल बदलकर जाने वालो चंद खिलौनों के खोने से बचपन नही मरा करता है लाखों बार गगरियां फूटीं शि़क़न न आई पर पनघट पर लाखों बार कश्तियां डूबीं चहल पहल वोही है तट पर तम की उम्र बढाने वालो लौ की आयु घटाने वालो लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नही मरा करता है लूट लिया माली ने उपवन लुटी न लेकिन गंध फूल की तूफानों तक ने छेड़ा पर खिड़की बंद न हुई धूल की नफरत गले लगाने वालो सब पर धूल उडाने वालो कुछ मुखडों क...

My fav Lines

Most of the shadows of this life are caused by our standing in our own sunshine. Ralph Waldo Emerson आज आखिर परेशान होकर पूछ ही लिया कैसे भगवन हो मुश्किलों में अकेला छोड़ चले जाते हो खुदा ने फ़रमाया हर किसी के साथ हर समय तो नहीं रह सकता हूँ इसिलिये कभी खुद आ जाता हूँ कभी अपनी बन्दों के रूप में रहमत भेज देता हूँ  इतिहास से आज मै पूछ बैठा; उपरवाले ने हर एक को वही हाथ वही पैर दिए; वही थोड़ी सी बुद्धि वही चलने के सलीके दिए ; वही कुछ कर गुजरने के बारूद के ढेर भी मन में भर दिए ; फिर भी तुम्हारी जुबां पर कुछ ही लोगों का नाम पता क्यूँ होता है ; क्यूँ चंद नामों का ही नाम तुम्हारी किताबों में बयां होता है ; तुम क्यूँ हर नाम का जोखा नहीं बताते; ऐसा पछ्पात करते क्यूँ नहीं सकुचाते; इतिहास से आज मै पूछ बैठा. इतिहास थोडा मुस्कुराया; अपनी नयी किताब एक पन्ना पलट कर फ़रमाया; कोई शक नहीं वही बुद्धि और कर गुजरने के बारूद के ढेर सभी को मिलें हैं ; बस फर्क सिर्फ इतना है कोई उसपर आंसुओं का पानी डालकर गलने देता है; कोई उम्मीद ...
धरती से सावन की बूंदे मिलने जब भी आती है उसकी शिकायत करती है कुछ अपना दर्द सुनती है कुछ रिश्ते नये बनाती एहसास नया दे जाती है हर एक कली को फूल बाग को गुलशन कर जाती है चाहत नयी सी होती है अरमान नया दे जाती है कुछ खुशी के पल कुछ मुस्कान नयी दे जाती है धरती से सावन की बूंदे मिलने जब भी आती है उसकी शिकायत करती है कुछ अपना दर्द सुनती है सूखे खेतो से जब सौंधी सी खुश्बू आती है सुनी आँखो मे फिर से एक ख्वाब नया दे जाती है कही प्यार नया होता है कही जुदाई दे जाती है कही सावन के झूले कही बिरहा के गीत सुनाती है धरती से सावन की बूंदे मिलने जब भी आती है उसकी शिकायत करती है कुछ अपना दर्द सुनती है
खुशकिस्मत होते है वे लोग जिनके मां-बाप होते है पूछो उनसे - जो अनाथ होते है । यदि कोई खुदा है इस धरती पर तो वो मां -बाप ही है तुम चाहे जैसे भी हो वो तुम्हारे साथ होते है । कैसे तुम रोओगे ? किसी और के सामने आंशूं बहाने और पोछने वाले भी तो चाहिए जो जो तुम्हारे साथ होते है ।
लफ़्ज़ एहसास—से छाने लगे, ये तो हद है   लफ़्ज़ माने भी छुपाने लगे, ये तो हद है   आप दीवार उठाने के लिए आए थे   आप दीवार उठाने लगे, ये तो हद है   ख़ामुशी शोर से सुनते थे कि घबराती है   ख़ामुशी शोर मचाने लगे, ये तो हद है   आदमी होंठ चबाए तो समझ आता है   आदमी छाल चबाने लगे, ये तो हद है   जिस्म पहरावों में छुप जाते थे, पहरावों में—   जिस्म नंगे नज़र आने लगे, ये तो हद है   लोग तहज़ीब—ओ—तमद्दुन के सलीक़े सीखे   लोग रोते हुए गाने लगे, ये तो हद है
किसी को क्या पता था इस अदा पर मर मिटेंगे हम   किसी का हाथ उठ्ठा और अलकों तक चला आया   वो बरगश्ता थे कुछ हमसे उन्हें क्योंकर यक़ीं आता   चलो अच्छा हुआ एहसास पलकों तक चला आया   जो हमको ढूँढने निकला तो फिर वापस नहीं लौटा   तसव्वुर ऐसे ग़ैर—आबाद हलकों तक चला आया   लगन ऐसी खरी थी तीरगी आड़े नहीं आई   ये सपना सुब्ह के हल्के धुँधलकों तक चला आया
खँडहर बचे हुए हैं, इमारत नहीं रही   अच्छा हुआ कि सर पे कोई छत नहीं रही   कैसी मशालें ले के चले तीरगी में आप   जो रोशनी थी वो भी सलामत नहीं रही   हमने तमाम उम्र अकेले सफ़र किया   हमपर किसी ख़ुदा की इनायत नहीं रही   मेरे चमन में कोई नशेमन नहीं रहा   या यूँ कहो कि बर्क़ की दहशत नहीं रही   हमको पता नहीं था हमें अब पता चला   इस मुल्क में हमारी हक़ूमत नहीं रही   कुछ दोस्तों से वैसे मरासिम नहीं रहे   कुछ दुशमनों से वैसी अदावत नहीं रही   हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग   रो—रो के बात कहने की आदत नहीं रही   सीने में ज़िन्दगी के अलामात हैं अभी   गो ज़िन्दगी की कोई ज़रूरत नहीं रही

धडकते साँस लेते

धडकते साँस लेते , चलते मैंने देखा है कुछ तो है जो अपने मे मैंने बदलते देखा है जब होते हो तुम साथ मेरे , राह की  मुश्किलों  को हाथ मलते मैंने देखा हैं बादलो से धूप चट्केगी,  मिलेंगी हमे हमारी मंजिल, तेरी आँखों मैं अपना सपना पलते मैंने देखा है. ...................
इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है, नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है। एक चिनगारी कही से ढूँढ लाओ दोस्तों, इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है। एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी, आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है। एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी, यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है। निर्वचन मैदान में लेटी हुई है जो नदी, पत्थरों से, ओट में जा-जाके बतियाती तो है। दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर, और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है।

dushyant kumar