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Showing posts from October, 2011

Gulzar

आदतन तुम ने कर दिए वादे आदतन हम ने ऐतबार किया तेरी राहों में हर बार रुक कर हम ने अपना ही इन्तज़ार किया अब ना माँगेंगे ज़िन्दगी या रब ये गुनाह हम ने एक बार किया

By Rahat Indori

उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो खर्च करने से पहले कमाया करो ज़िन्दगी क्या है खुद ही समझ जाओगे बारिशों में पतंगें उड़ाया करो दोस्तों से मुलाक़ात के नाम पर नीम की पत्तियों को चबाया करो शाम के बाद जब तुम सहर देख लो कुछ फ़क़ीरों को खाना खिलाया करो अपने सीने में दो गज़ ज़मीं बाँधकर आसमानों का ज़र्फ़ आज़माया करो चाँद सूरज कहाँ, अपनी मंज़िल कहाँ ऐसे वैसों को मुँह मत लगाया करो
पुराने शहरों के मंज़र निकलने लगते हैं ज़मीं जहाँ भी खुले घर निकलने लगते हैं मैं खोलता हूँ सदफ़ मोतियों के चक्कर में मगर यहाँ भी समन्दर निकलने लगते हैं हसीन लगते हैं जाड़ों में सुबह के मंज़र सितारे धूप पहनकर निकलने लगते हैं बुरे दिनों से बचाना मुझे मेरे मौला क़रीबी दोस्त भी बचकर निकलने लगते हैं बुलन्दियों का तसव्वुर भी ख़ूब होता है कभी कभी तो मेरे पर निकलने लगते हैं अगर ख़्याल भी आए कि तुझको ख़त लिक्खूँ तो घोंसलों से कबूतर निकलने लगते हैं
जिसकी धुन पर दुनिया नाचे, दिल एक ऐसा इकतारा है, जो हमको भी प्यारा है और, जो तुमको भी प्यारा है. झूम रही है सारी दुनिया, जबकि हमारे गीतों पर, तब कहती हो प्यार हुआ है, क्या अहसान तुम्हारा है. जो धरती से अम्बर जोड़े , उसका नाम मोहब्बत है , जो शीशे से पत्थर तोड़े , उसका नाम मोहब्बत है , कतरा कतरा सागर तक तो ,जाती है हर उमर मगर , बहता दरिया वापस मोड़े , उसका नाम मोहब्बत है . पनाहों में जो आया हो, तो उस पर वार क्या करना ? जो दिल हारा हुआ हो, उस पे फिर अधिकार क्या करना ? मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कशमकश में हैं, जो हो मालूम गहराई, तो दरिया पार क्या करना ? बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन, मन हीरा बेमोल बिक गया घिस घिस रीता तनचंदन, इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज़ गज़ब की है, एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन. तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ, तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ, तुम्हे मै भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नही लेकिन, तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ By: Dr Kumar Vishwas your view