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Showing posts from May, 2015
दिल में ना हो ज़ुर्रत तो मोहब्बत नहीं मिलती ख़ैरात में इतनी बङी दौलत नहीं मिलती कुछ लोग यूँही शहर में हमसे भी ख़फा हैं हर एक से अपनी भी तबीयत नहीं मिलती देखा था जिसे मैंने कोई और था शायद वो कौन है जिससे तेरी सूरत नहीं मिलती हंसते हुए चेहरों से है बाज़ार कीज़ीनत रोने को यहाँ वैसे भी फुरसत नहीं मिलती निदा फाजली
शायर निदा फाजली हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा मैं ही कश्ती हूँ मुझी में है समंदर मेरा किससे पूछूँ कि कहाँ गुम हूँ बरसों से हर जगह ढूँढता फिरता है मुझे घर मेरा एक से हो गए मौसमों के चेहरे सारे मेरी आँखों से कहीं खो गया मंज़र मेरा मुद्दतें बीत गईं ख़्वाब सुहाना देखे जागता रहता है हर नींद में बिस्तर मेरा आईना देखके निकला था मैं घर से बाहर आज तक हाथ में महफ़ूज़ है पत्थर मेरा