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Showing posts from 2012

स्वप्न देखा नहीं जाता महसूस किया जाता है

क्यूँकी राह में धूप तो होगी स्वप्न देखा नहीं जाता महसूस किया जाता है इसमें शब्दों का खेल नहीं वरन रक्त और पसीने का मेल किया जाता है  ऐसा वक़्त भी आता है जब गिरने पर दर्द को भी दर्द का भान नहीं होता कई बार हारने पर भी जीत की उम्मीद छूटने का ज्ञान नहीं होता  मौत खडी हो लक्ष्य के दरमियाँ फिर भी सांस नहीं रूकती परिस्थितियाँ कहते थक जाएँ पर 'एक बार फिर' कोशिश  करने की प्यास नहीं बुझती  और तुम कहते हो की हम रुक जाएं क्यूँकी राह में धूप तो होगी  स्वप्न महसूस करना कोई जज्बात की बात नहीं ये तो खुद की खुद से जंग है कायरों को मिलने वाली सस्ती सौगात नहीं  व्यापार  में लाभ हानि तो व्यापारी  देखते  हैं  सपनों के लिए लड़ने वालों को व्यापरी के तराजू में नहीं तौलते हैं  धूप छाँव क्या चीज़ है ये तो सूरज के अस्तितिव को भी नहीं पूजते है  जो अपने स्वप्न के लिए जीते हैं वो जीवन का मृत्यु को भी रीझते है और तुम कहते हो की हम रुक जाएं क्यूँकी राह में धूप तो होगी ...

बिना औलाद की माँ

कॉलबेल की आवाज़ सुनकर जैसे ही सुबह सुबह शांतनु ने दरवाजा खोला सामने एक पुराना से ब्रीफकेस लिए गांव के मास्टर जी और उनकी बीमार पत्नी खड़ी थीं। मास्टर जी ने चेहरे के हाव भाव से पता लग गया कि उन्हें सामने देख शांतनु को जरा भी खुशी का अहसास न हुआ है।जबरदस्ती चेहरे पर मुस्कुराहट लाने की कोशिश करते हुए बोला "अरे सर आप दोनों बिना कुछ बताए अचानक से चले आये!अंदर आइये।" मास्टर साहब ब्रीफकेस उठाये अंदर आते हुए बोले" हाँ बेटा, अचानक से ही आना पड़ा मास्टरनी साहब बीमार हैं पिछले कुछ दिनों से तेज फीवर उतर ही नहीं रहा ,काफी कमजोर भी हो गई है।गाँव के डॉक्टर ने AIIMS दिल्ली में अविलंब दिखाने की सलाह दी।अगर तुम आज आफिस से छुट्टी लेकर जरा वहाँ नंबर लगाने में मदद कर सको तो..." "नहीं नहीं ,छुट्टी तो आफिस से मिलना असंभव सा है "बात काटते हुए शांतनु ने कहा ।थोड़ी देर में प्रिया ने भी अनमने ढंग से से दो कप चाय और कुछ बिस्किट उन दोनों बुजुर्गों के सामने टेबल पर रख दिये। सान्या सोकर उठी तो मास्टर जी और उनकी पत्नी को देखकर खूब खुशी से चहकते हुए "दादू दादी"बोलकर उनसे लिपट गयी...
मस्जिदों-मन्दिरों की दुनिया में मुझको पहचानते कहाँ हैं लोग रोज़ मैं चाँद बन के आता हूँ दिन में सूरज सा जगमगाता हूँ खनखनाता हूँ माँ के गहनों में हँसता रहता हूँ छुप के बहनों में मैं ही मज़दूर के पसीने में मैं ही बरसात के महीने में मेरी तस्वीर आँख का आँसू मेरी तहरीर जिस्म का जादू मस्जिदों-मन्दिरों की दुनिया में मुझको पहचानते नहीं जब लोग मैं ज़मीनों को बे-ज़िया करके आसमानों में लौट जाता हूँ मैं ख़ुदा बन के क़हर ढाता हूँ your view

बर्शेते हम सही हो अपने अंदर,

क्या होता है इश्वर कैसा होता है इश्वर मायने हम ही देते है सही और गलत को , बर्शेते हम सही हो अपने अंदर, आइना बनने से बेहतर की पत्थर बनो जब भी तराशे जाओगे देवता कहलोगे